Wednesday, December 17, 2008

मै सर्व शिक्षा अभियान

भाई मै सर्व शिक्षा अभियान चला रहा हूँ ।
अनाज की बोरी ढो ढो के घर ला रहा हूँ ।
बच्चे भी बहुत अधिक संख्या में आ रहे हैं ।
किताब की जगह थाली बसते में भरकर ला रहें है ।
बच्चे रोज अधिक मात्रा में आ जाते है ।
लंच तक स्कूल में रहते हें खा के घर जाते हें ।
सरकार ने बच्चे को खाने के लिए बहुत कुछ दिया ।
अच्छी चीजे घर और बचा हुआ हमने बच्चों को दिया।
आख़िर हम भी सभ्य शिक्षक जो ठहरें ।
कभी कभाल चेकिंग आ जाती है ।
चाबल की बोरी को पानी में डूबा दी जाती है।
आखिर वो भी हमारी तरह ही इन्शान है ।
नोटों पर बिकता उनका भी ईमान है ।
इसलिए तो साफ बच जाते हें ।
आखिर वो भी हमारा दिया ही खाते है ।
गरीब बच्चों की किसे है परवाह ।
थोड़ा सा चावल खाकर करेंगे वाह वाह ।

Sunday, December 7, 2008

वक्त की आवाज़

ऐसे नेताओं के कंधे पर


















मेरा प्यारा हिंदुस्तान

Saturday, December 6, 2008

राजनीती शहीदों पर .....

झारखण्ड में फिर शहीद हुए जवान ।

रह गए जूते और खून के निशान ।


चार कन्धों पर शहीदों का शव उठाइए ।


श्रधांजलि में फूल माला चढाइए।


सम्मान में दो चार गोली भी चलाइये


पहुँच जायेगी नेताओं की टोली ।


एक लाख जिन शहीदों ने खाई गोली ।


फिर माइक पर नेता सुनायेंगे भाषण ।


हम मओवादिओं पर लगाम लगायेंगे ।


मओवादिओं को अंधेरे में बारूद पहुचायेंगे ।


हम नेता है जान की नही है फिकर ।


झारखण्ड की ६० फीसद पुलिस है हमारे घर ।


वैसे भी मओवादिओं को हम ही बनाते हैं ।


चुनाव में वही तो हमें जीतते हैं ।


Friday, December 5, 2008

वोट की राजनीति

आतंकवाद की जड़े देश में कितनी गहरी हो चुकी है इस बात का जीता जागता प्रमाण है असम में बम बिस्फोट । सुरक्षा एजेंसियों के नाकामी के चलते हम कब तक निर्दोष लोगों का लहू बहत्ता देखेंगे। अपर्याप्त मशीनरी के सहारे देश को आतंकवादियों के सिकंजे से मुक्त नही कराया जा सकता, सबसे दुखद बात तो यह है की आतंकी हमलो की आड़ में राजनीती का घिनौंनाखेल ये राजनेता खेलते है। सरकार जितनी तत्परता प्रज्ञा साध्वी और उसकी टोली को कुचलने में दिखा रही थी उतनी तत्परता अगर आतंकवादियों से निपटने में लगाती तो आज मंजर कुछ और होता। हैरानी की बात है की अपना झूठा शौर्य दिखाने वाले राज ठाकरे मुंबई हमले के समय से कहीं विलुप्त हो गये इससे पता चलता है की मुंबई की चिंता उन्हें कितनी है। कहाँ गई वो शेर वाली दहाड़ जो केवल निर्दोष बिहारियों के लिए थी।कहाँ गए वे लोग जिन्होंने जुल्म बिहारियों पर किया।६० साल के बाद भी हमारे राजनितिक दलों को पता नहीं की सामाजिक रूप से बाँटने वाले मुद्दे से कैसे निपटा जाय ।

Thursday, December 4, 2008

हाय रे फैशन



लगता है अपना सब कुछ खो गया है।
घूँघट की जगह जींस फैशन हो गया है ।
हांथो में चुडिया माँथे का टिका खो गया है ।
अब तो फ्रेंड शिप बैंड टोपी फैशन हो गया ।

अब फैशन का जमाना आ गया है ।
दूध घी की जगह शराब छा गया है ।
अपनी संस्कृति धीरे धीरे खो गया है ।
बाबूजी की जगह अब डैड हो गया है ।

भाई हम भी कभी फैशन करते थें ।
टोपी की जगह सर पर गमछा धरते थे ।
अब तो सभी देखने की चीज हो गया है ।
लगता है अपना सब कुछ खो गया है।

वो सरसों धान गेहूं की हरियाली भी खो गई है ।
सारसों साग मक्के की रोटी के जगह चिकन हो गई है ।
उर्वरकों के प्रयोग से मिटटी में उपजाऊ क्षमता खो गया है ।
हमारा बैल भी बिना काम बिगडा आलसी हो गया है ।
लगता है अपना सब कुछ खो गया है।

Wednesday, December 3, 2008

लहू पुकारता है

खून से रंग ये मेरा सादा रंग आज चीख चीख कर कह रहा है मै हिंदुस्तान हूँ मेरा हरा रंग हरियाली नही गोलियों और बमों के धुएँ से काला हो गया है केसरिया आब बल भरना नही चुरियाँ पहनने को मजबूर कर रहा है हां मै हिंदुस्तान हूँ । मै चाहकर भी कुछ नही कर सकता मेरी बाग़ डोर एसे राजनेताओं के पास है । जो ख़ुद कमजोर है ।को राज नेता उनके स्मृति पर फूलों की माला मत चढाना ये फूलों की माला उनकी आत्मा को शूल की तरह चुभेगी बं अगर मेरे रक्षक कमजोर न होते तो आज अफजल गुरु फांसीके तख्ते पर झूल गया होता । मेरे वीर शहीद जवानों द करो ये मौत के सौदागरों से रहम की भीख मांगना इससे मुझे शर्म आती है । हाँ मै हिंदुस्तान हूँ । अब सहा नही जाता मेरे ही बच्चों के खून से रंगा शव। हाँ मै हिंदुस्तान हूँ । अब तो जागो और उन्हें उनके ही घर में घुस कर अपने हर खून का हर चीख का गिन गिन कर बदला लो ताकि मेरे सीने में लगा वीर चक्र गर्व से घूमता रहे ।

जय जवान जय हिंदुस्तान

आतंकियों की कर दो बकवास बंद

Saturday, November 29, 2008

कुर्सी की माया....

लो शुरू हो गई मौत पर राजनीति का खेल,
कांग्रेस सरकार सभी मायनों पर फ़ेल,
सरकार को छोडिये भाजपा को वोट दीजिये,
आतंकवाद में सवा एक परसेंट दिस्कोंट लीजिये,
हमें वोट दीजिये ...हम आतंकवाद पर लगाम लगाएँगे,
इस बार पानी नहीं हवा के रास्ते आतंकी आएँगे,
मुंबई में मारे गए शहीदों को श्रधांजलि दीजिए ,
दो चार लाख देकर मामला रफा दफा कीजिए,
हम आतंकवाद के मुद्दे पर एक जुट हैं,
पर कुर्सी से भी हमारा नाता अटूट है,
जब जब देश में आतंकी आता है,
हमारी कुर्सी की एक टांग डगमगाता है,
साल में एक बार ही २६/११ याद आएगा,
शायद तब तक चुनाव पहुँच जाएगा........

Monday, November 24, 2008

कमजोर लाठी

माँ जो अपने बच्चे को ९ महीने कोख में पालती है । एक बाप जो अपने बच्चे के सपने को पुरा करने के लिए कोल्हू की बैल की तरह पिसता रहता है। अपने दामन से उम्मीद लगाये की एक दिन एसा आएगा जब मेरा बेटा बार होकर मेरी सेवा करेगा और मेरे बुढापे की लाठी बनेगा । माँ बाप के साये में बच्चे बड़े तो हो जाते है पर अपना मात्री और पीत्री धरम भूल जाते है । माँ बाप बोझ लगने लगते है । उन्हें ये बच्चे सरे दुखो का कारण लगने लगते है । जिससे बचने के लिए ये लड़के अपने माँ बाप को वृधा आश्रम तक भेज देते है । इन लड़कों को प्यार की शिक्षा उस पतंगे से लेनी चाहिए जो जानती है की आग की रोशनी उसे जला देगी फिर भी आग के अगल बगल ये घुमती रहती है । एक भवरा जिसे कमल की पंखुडियों से इतना प्रेम होता है की जब शाम के वक्त कमल अपनी पंखुडियों को समेटता है तो भवरा उन्ही पंखुडियों में रहकर अपनी जान दे देता है । उन्हें प्यार सीखना होगा उन जातक पक्षी से जिसे सावन की बूंदों से इतना प्यार होता है की उसकी पहली बूँद के लिए वे महीनो इन्तजार करतें है मेरा सवाल है उन बेटों से जो अपने माता पिता को बुढापे में बोझ समझतें है । जरा अपने दिल के अन्दर झांक कर देखो जरा भी तुममे शर्म बाकि है तो सोंचो तुम भी एक दिन पिता बनोगे बुढापा तुम्हे भी अपनी आगोश में ले लेगा फिर तुम भी पछताओगे और अपने कर्मों को याद करोगे ।
एक लाठी जो टूट गया ।

एक सपना मुझसे रूठ गया ।

मेरा दामन मुझसे ही छूट गया ।

एक लाठी जो टूट गया ।

बड़ी अरमानो से बागवा सजाया था ।

काँटों में रहकर फूलों का जहाँ बसाया था ।

जाने वो बागवा भी कहीं छूट गया ।

एक लाठी जो टूट गया ।

पहली बार जब तुने कदम उठाया था ।

सारे गमो को भूलकर हमने जसं मनाया था ।

भगवान् भी मेरी खुशियों को लूट गया ।

एक लाठी जो टूट गया ।


Saturday, November 15, 2008

मत बांटो मजहब के नाम पे

अगर हम सब में जरा भी ईमान होता ,

तो धर्म के नाम पे हिंदू न मुस्लमान होता ,

न कोई अपनों को खोता न इन्सान होने पर रोता ,

न किसी बचे के आँखों में खौफ का मंजर होता ,

न किसी माँ की गोद से कोई बच्चा खोता ,

मजहब के नाम पे देश को बाँटने वाले ,

अगर रमजान में राम दिवाली में अली को देखा होता ,

तो इन्शानो का खून बहाने से पहले जरूर रोता ,

Tuesday, November 11, 2008

एक दर्द

एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।

गरीबों के गरीबी को याद दिलाती है ।

दर्द भरी ऑंखें भूखे पेट दिल जलती है ।

एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।

एक चेहरा जो मुझे आज भी आँखे दिखाती है ।

तन पे फटे कपड़े कचडे का बोझ बस यही बताती है ।

एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।

निराशा में आशा की जोत जलाती है ।

क्यों इंसानों के पास गरीबी आती है ।

एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।

Saturday, October 25, 2008

बेटा राज अब चुप हो जा ....

राज तू तेरी बकवास बंद कर हम बिहारी भइया रंग में आ गए तो तुझे भारत से भागना पड़ेगा। बेवकूफ तुझे नही पता केन्द्र सरकार की नौकरी में बाहरी कौन है? साले हम बिहार यूपी वाले क्या पाकिस्तान से आए हैं जो तू हमें बाहरी बोल रहा है। अपनी चुतिओं की जमात को समझा और तू भी समझ की हम कौन हैं, नही तो तेरा थोबरा हम तोड़ देंगे। और तेरी बकवास बंद हो जायेगी।