Friday, December 5, 2008

वोट की राजनीति

आतंकवाद की जड़े देश में कितनी गहरी हो चुकी है इस बात का जीता जागता प्रमाण है असम में बम बिस्फोट । सुरक्षा एजेंसियों के नाकामी के चलते हम कब तक निर्दोष लोगों का लहू बहत्ता देखेंगे। अपर्याप्त मशीनरी के सहारे देश को आतंकवादियों के सिकंजे से मुक्त नही कराया जा सकता, सबसे दुखद बात तो यह है की आतंकी हमलो की आड़ में राजनीती का घिनौंनाखेल ये राजनेता खेलते है। सरकार जितनी तत्परता प्रज्ञा साध्वी और उसकी टोली को कुचलने में दिखा रही थी उतनी तत्परता अगर आतंकवादियों से निपटने में लगाती तो आज मंजर कुछ और होता। हैरानी की बात है की अपना झूठा शौर्य दिखाने वाले राज ठाकरे मुंबई हमले के समय से कहीं विलुप्त हो गये इससे पता चलता है की मुंबई की चिंता उन्हें कितनी है। कहाँ गई वो शेर वाली दहाड़ जो केवल निर्दोष बिहारियों के लिए थी।कहाँ गए वे लोग जिन्होंने जुल्म बिहारियों पर किया।६० साल के बाद भी हमारे राजनितिक दलों को पता नहीं की सामाजिक रूप से बाँटने वाले मुद्दे से कैसे निपटा जाय ।

3 comments:

समीर सृज़न said...

अच्छा लिखा है आपने.. आजकल अपराध का राजनीतिकरण हो गया है या राजनीती का अपराधीकरण.. जल्दी ही इससे निपटने की जरुरत है..नहीं तो देश को पंगु होने मे ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा..

राजीव करूणानिधि said...

लिखा तो सही मुद्दे पर है, पर आक्रोश से ज्यादा इसे समझने और गहन विचार की जरूरत है. और निखर की आवश्यकता है, शुक्रिया....

अखिलेश सिंह said...

aap ke kahne ka kya matlab hai sadhvi aur uske chamcho ko chhod de aatanki to bahar se aa ke desh ko khokhla kar rahe hai, par dharm ke ye thekedaar to bhitri kide hain jo andar hi andar desh ko khokhla kar rahe hain.
mujhe aap ke vichar par hansi aati hai bhai .......