Thursday, December 4, 2008

हाय रे फैशन



लगता है अपना सब कुछ खो गया है।
घूँघट की जगह जींस फैशन हो गया है ।
हांथो में चुडिया माँथे का टिका खो गया है ।
अब तो फ्रेंड शिप बैंड टोपी फैशन हो गया ।

अब फैशन का जमाना आ गया है ।
दूध घी की जगह शराब छा गया है ।
अपनी संस्कृति धीरे धीरे खो गया है ।
बाबूजी की जगह अब डैड हो गया है ।

भाई हम भी कभी फैशन करते थें ।
टोपी की जगह सर पर गमछा धरते थे ।
अब तो सभी देखने की चीज हो गया है ।
लगता है अपना सब कुछ खो गया है।

वो सरसों धान गेहूं की हरियाली भी खो गई है ।
सारसों साग मक्के की रोटी के जगह चिकन हो गई है ।
उर्वरकों के प्रयोग से मिटटी में उपजाऊ क्षमता खो गया है ।
हमारा बैल भी बिना काम बिगडा आलसी हो गया है ।
लगता है अपना सब कुछ खो गया है।

2 comments:

अखिलेश सिंह said...

सच में इस ब्लोगर का सब कुछ खो गया है . दिमाग दूर कही दूर हो गया है .
दूसरो की बकवास बंद करवाते करवाते
ये खुद ही बकवास करने लगा है .....

राजीव करूणानिधि said...

आपने अपनी कविता के जरिये समाज के बदलते परिवेश को बताया है, अच्छा लगा. पर आपने ये नहीं बताया की जो हो रहा है अच्छा है या बुरा. बदलाव वक़्त की जरूरत है, वैसे आपकी संवेदना समझने लायक है, शुक्रिया लिखते रहिये...