Saturday, November 29, 2008

कुर्सी की माया....

लो शुरू हो गई मौत पर राजनीति का खेल,
कांग्रेस सरकार सभी मायनों पर फ़ेल,
सरकार को छोडिये भाजपा को वोट दीजिये,
आतंकवाद में सवा एक परसेंट दिस्कोंट लीजिये,
हमें वोट दीजिये ...हम आतंकवाद पर लगाम लगाएँगे,
इस बार पानी नहीं हवा के रास्ते आतंकी आएँगे,
मुंबई में मारे गए शहीदों को श्रधांजलि दीजिए ,
दो चार लाख देकर मामला रफा दफा कीजिए,
हम आतंकवाद के मुद्दे पर एक जुट हैं,
पर कुर्सी से भी हमारा नाता अटूट है,
जब जब देश में आतंकी आता है,
हमारी कुर्सी की एक टांग डगमगाता है,
साल में एक बार ही २६/११ याद आएगा,
शायद तब तक चुनाव पहुँच जाएगा........

Monday, November 24, 2008

कमजोर लाठी

माँ जो अपने बच्चे को ९ महीने कोख में पालती है । एक बाप जो अपने बच्चे के सपने को पुरा करने के लिए कोल्हू की बैल की तरह पिसता रहता है। अपने दामन से उम्मीद लगाये की एक दिन एसा आएगा जब मेरा बेटा बार होकर मेरी सेवा करेगा और मेरे बुढापे की लाठी बनेगा । माँ बाप के साये में बच्चे बड़े तो हो जाते है पर अपना मात्री और पीत्री धरम भूल जाते है । माँ बाप बोझ लगने लगते है । उन्हें ये बच्चे सरे दुखो का कारण लगने लगते है । जिससे बचने के लिए ये लड़के अपने माँ बाप को वृधा आश्रम तक भेज देते है । इन लड़कों को प्यार की शिक्षा उस पतंगे से लेनी चाहिए जो जानती है की आग की रोशनी उसे जला देगी फिर भी आग के अगल बगल ये घुमती रहती है । एक भवरा जिसे कमल की पंखुडियों से इतना प्रेम होता है की जब शाम के वक्त कमल अपनी पंखुडियों को समेटता है तो भवरा उन्ही पंखुडियों में रहकर अपनी जान दे देता है । उन्हें प्यार सीखना होगा उन जातक पक्षी से जिसे सावन की बूंदों से इतना प्यार होता है की उसकी पहली बूँद के लिए वे महीनो इन्तजार करतें है मेरा सवाल है उन बेटों से जो अपने माता पिता को बुढापे में बोझ समझतें है । जरा अपने दिल के अन्दर झांक कर देखो जरा भी तुममे शर्म बाकि है तो सोंचो तुम भी एक दिन पिता बनोगे बुढापा तुम्हे भी अपनी आगोश में ले लेगा फिर तुम भी पछताओगे और अपने कर्मों को याद करोगे ।
एक लाठी जो टूट गया ।

एक सपना मुझसे रूठ गया ।

मेरा दामन मुझसे ही छूट गया ।

एक लाठी जो टूट गया ।

बड़ी अरमानो से बागवा सजाया था ।

काँटों में रहकर फूलों का जहाँ बसाया था ।

जाने वो बागवा भी कहीं छूट गया ।

एक लाठी जो टूट गया ।

पहली बार जब तुने कदम उठाया था ।

सारे गमो को भूलकर हमने जसं मनाया था ।

भगवान् भी मेरी खुशियों को लूट गया ।

एक लाठी जो टूट गया ।


Saturday, November 15, 2008

मत बांटो मजहब के नाम पे

अगर हम सब में जरा भी ईमान होता ,

तो धर्म के नाम पे हिंदू न मुस्लमान होता ,

न कोई अपनों को खोता न इन्सान होने पर रोता ,

न किसी बचे के आँखों में खौफ का मंजर होता ,

न किसी माँ की गोद से कोई बच्चा खोता ,

मजहब के नाम पे देश को बाँटने वाले ,

अगर रमजान में राम दिवाली में अली को देखा होता ,

तो इन्शानो का खून बहाने से पहले जरूर रोता ,

Tuesday, November 11, 2008

एक दर्द

एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।

गरीबों के गरीबी को याद दिलाती है ।

दर्द भरी ऑंखें भूखे पेट दिल जलती है ।

एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।

एक चेहरा जो मुझे आज भी आँखे दिखाती है ।

तन पे फटे कपड़े कचडे का बोझ बस यही बताती है ।

एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।

निराशा में आशा की जोत जलाती है ।

क्यों इंसानों के पास गरीबी आती है ।

एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।